नई दिल्ली: इस बार द्वितीय स्वर्गीय अर्जून चन्द्र बर्मन पुरस्कार सिल्चर,असम के कर्मठ कवि एवं गल्पकार बांग्ला साहित्यकार आशुतोष दास को “प्रज्ञा मेल”के द्वितीय बहूभाषी कवि सम्मेलन एवं सम्मान-समारोह में 17 दिसम्बर को प्रदान किया जाएगा। आशुतोष दास दलित साहित्य के लेखक हैं। प्रेम और सौन्दर्य को लेकर जीवन जीने के पक्षधर हैं। पिछले 50 वर्ष से बांग्ला की एक पत्रिका का सम्पादन भी कर रहे हैं।प्रज्ञा मेल की आयोजन कमेटी की एक बैठक में अंतरराष्ट्रीय पत्रकार रत्नज्योति दत्ता की अध्यक्षता में यह निर्णय सर्वसम्मति से पारित हुआ, निर्णायक मंडल में प्रज्ञा मेल के सम्पादक अरूण कुमार बर्मन भी मौजूद थे।इस पुरस्कार की पिछले वर्ष सम्पादक अरूण कुमार बर्मन ने अपने स्वर्गीय पिता अर्जून चन्द्र बर्मन की स्मृति में कोलकाता के एक कार्यक्रम में देने की घोषणा की थी।प्रज्ञा मेल का दूसरा बहुभाषी अखिल भारतीय कवि सम्मेलन पहले ही जाने-माने कवियों के बीच धूम मचा चुका है। कोलकाता का लोकप्रिय अंग्रेजी समाचार समूह न्यूज मेनिया, पूर्वोत्तर का सनसनीखेज समाचार पोर्टल नया थाहर और गुवाहाटी की लोकप्रिय असमिया पत्रिका ‘रहस्य’ इस कार्यक्रम के सह-आयोजक हैं। प्रसिद्ध बहुभाषी असमिया कवि काव्यमणि बोरा,इंटर नेशनल इक्वाटेवल ह्यूमन राइट्स सोशल काउन्सिल के चेयरमैन एवं पत्रकार संजय सिन्हा भी इस कार्यक्रम के आयोजकों में से एक हैं।
अर्जुन चन्द्र बर्मन का जन्म 2 अक्टूबर ,1939 में बांग्लादेश के एक किसान परिवार में हुआ था। वहां पितृक सम्पत्ति में काफी जमीन थी,जिसको उन्हें दंगे के दौरान रातों रात पूर्वी पाकिस्तान छोड़ के आना पड़ा। इससे पूर्व अपने दम पर मैट्रिक पास की और पूर्वी पाकिस्तान के ढाका विश्वविद्यालय के कायदे-आजम से बी.काॅम पास किया। सेवा भाव उनके मन में था, फिर बी.फार्मा किया, ढाका के होली फैमिली में दवाई वितरण के इंचार्ज रहे। मगर एम.काॅम में दाखिले के वक्त भारत आना पड़ा। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी कैंप में अव्यवस्था का आलम देखा और अपने कई नजदीकी लोगों को हैजा आदि से मरते देखा।तब उन्होंने निर्णय लिया कि वह यहां नहीं रह सकते,तब गुवाहाटी में कैमिस्ट शाॅप में नौकरी की और साथ ही साथ रिफ्यूजी कैंप में लोगों को फ्री दवा बांटते। असम के माटिया में कुछ समय स्कूल में हेडमास्टर रहकर पढ़ाया भी।उसके बाद उन्हें लखनऊ,उ.प्र. के पास लखीमपुर खीरी में भारत सरकार के पुर्नवास मंत्रालय में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् उन्होंने सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लेखा विभाग में नौकरी मिल गई और दिल्ली आ गए। यहां उन्हें कई भाषाओं के अखबार को पढ़ने का अवसर मिला। पढ़ने में उनकी रूचि प्रारम्भ से थी। इसी दौरान अंग्रेजी के अलावा कई भाषाएं भी सीखी। उर्दू तो पुरानी दिल्ली में कर्फ्यू के अनुभव और आफिस के एक सहयोगी के चुनौती देने पर मात्र एक सप्ताह में सीखी। सन् 1998 में लेखा अधिकारी की नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी उनके ब्लिज, द करंट, हिंदुस्तान टाइम्स आदि प्रिय अखबार रहे। सन् 2015 में उनका बुध पुर्णिमा के दिन देहावसान हुआ।