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ई-कॉमर्स नियम और डेटा संरक्षण क़ानून प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत को मजबूती देंगे

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ई कॉमर्स नियम एवं डेटा संरक्षण एक ही सिक्के के दो पहलु -कैट 

आसनसोल: कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने भारत में काम कर रही विदेशी कंपनियों के चंगुल से घरेलू व्यापार और देश के असीमित डेटा को संरक्षित करने के लिए केंद्र सर्कार से ई-कॉमर्स नियमों और नीति तथा डेटा संरक्षण क़ानून को जल्द से जल्द लागू करने की जोरदार पैरवी की है ! कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री सुभाष अग्रवाला ने कहा की ई-कॉमर्स नियम और डेटा संरक्षण क़ानून एक दूसरे के लिए बेहद जरूरी हैं क्योंकि हर प्रकार के ई सिस्टम को इस्तेमाल करने पर ही डेटा प्राप्त होता है और ई कॉमर्स व्यापार डेटा उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत है! श्री अग्रवाला ने कहा की यह दोनों नियम एवं क़ानून यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि बड़ी तकनीकी कंपनियों के डेटा संग्रह और प्रसंस्करण गतिविधियों से भारत का रिटेल व्यापार नकारात्मक रूप से प्रभावित न हो। उन्होंने कहा की यह एक सच्चाई है कि वैश्विक कंपनियां भारत के नियम एवं कानूनों का घोर उल्लंघन कर रही हैं जिससे उनको भारतीय व्यापारियों एवं रिटेल व्यापार पर प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने में मदद मिलती है !ज्ञातव्य है की कैट एक लम्बे समय से ई-कॉमर्स नियमों और नीति को तत्काल लागू करने और ई-कॉमर्स व्यापार की निगरानी के लिए एक रेगुलेटरी अथॉरिटी के गठन की मांग केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय से कर रहा है वहीँ कैट केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से संसद के आगामी बजट सत्र में ही डेटा संरक्षण क़ानून को पारित करवाने की भी मांग लगातार करता आ रहा है !कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष  बी.सी. भरतिया ने कहा कि भारतीय ई-कॉमर्स व्यापार पर कुछ वैश्विक ई-कॉमर्स कंपनियों का कब्जा है क्योंकि उन्हें सरकारी नीति के उल्लंघन करने की खुली छूट दे रखी है और अपराधी होने के बाद भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। यह एक खुला तथ्य है कि इन ई-कॉमर्स पोर्टलों पर पंजीकृत विक्रेता पोर्टल की ही संबंधित कंपनियां हैं ! यह पोर्टल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने विक्रेता को नियंत्रित करते हैं और वे अपने पंजीकृत विक्रेताओं के लिए थोक विक्रेता के रूप में भी कार्य करते हैं जो कि नीति का ही एक स्पष्ट उल्लंघन है! इतना ही नहीं, ई-पोर्टल खुद के ब्रांड या अपने निजी लेबल ब्रांड बनाते हैं और अपने ई-पोर्टल में भेदभावपूर्ण मॉड्यूल अपनाकर अपने स्वयं के तरजीही विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं को बड़ा लाभ देते हैं तथा पक्ष एक इन्वेंट्री-आधारित ई-कॉमर्स इकाई के रूप में काम कर रहे हैं जो की नीति के अनुसार जायज नहीं है !श्री खंडेलवाल ने कहा कि देश के लोगों के डेटा का दुरुपयोग न हो, विशेष रूप से टेक्नोलॉजी कंपनियों एवं ई कॉमर्स कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत डेटा के अंतहीन और अनियंत्रित इस्तेमाल न हो इसलिए इन कंपनियों द्वारा देश के बाहर डेटा भेजने पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। टेक्नोलॉजी वाली विदेशी बड़ी कंपनिया विश्व भर से डेटा एकत्रित कर उसका दुरुपयोग करती है, और लागत से भी कम मूल्य पर माल बेच कर स्थानीय क्षेत्रों और उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बड़ा धक्का पहुंचाते हुए खुद मोटा मुनाफा कमाती है। ये कंपनियां अपने खुद के पसंद विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के एक जटिल जाल के जरिये ग्राहकों के व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग करके लाभ कमाते है, ये सीधे तौर पर अपने चहिते विक्रेताओं को कम या बिना कमीशन शुल्क के अनेक सुविधाएं देते है जबकि अन्य विक्रेताओं से पूरा कॉमिशन लेते हैं इससे उनके चहेते विक्रेता स्थानीय उद्यमियों के जरिये कम दामो पर माल बेचते है जो कि अनुचित प्रतिस्पर्धा है।

श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल ने कहा कि डिजिटल टेक्नोलॉजी क्षेत्र में बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां तथा अन्य ग्लोबल कंपनियां आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 79 की गलत व्याख्या करते हुए स्वयं को एक ‘मध्यस्थ’ होने का दावा करती हैं और स्थानीय कानूनों को धता बताती हैं ।उक्त क़ानून के अनुसार, कहा गया है की मध्यस्थ वो है जो केवल टेक्नोलॉजी प्लेटफार्म प्रदान करता है जिस पर एक पक्ष दूसरे पक्ष से संपर्क स्थापित कर व्यापार अथवा अन्य कोई सन्देश स्वतंत्र रूप से प्रसारित कर सकता है जिसमें इंटरनेट सेवा प्रदाता और दूरसंचार सेवा प्रदाता शामिल हैं। यह प्रावधान मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की जानकारी के लिए जिम्मेदार होने से छूट देता है ! जबकि इन वैश्विक कंपनियों द्वारा ई कॉमर्स अथवा अन्य क्षेत्रों में चलाई जा रही गतिविधियां ‘मध्यस्थ’ प्रकृति की नहीं हैं, क्योंकि बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां या अन्य टेक्नोलॉजी कंपनियां केवल टेक्नोलॉजी प्रदाता नहीं है बल्कि अपने प्लेटफार्म पर होने वाली हर गतिविधि को नियंत्रित करती है ! सुभाष अग्रवाला ने कहा की ई-कॉमर्स नियमों और नीति और डेटा संरक्षण अधिनियम दोनों को तुरंत लागू करने की आवश्यकता है।