अंतरराष्ट्रीय

डूरंड लाइन के घेराव को लेकर तालिबान और पाकिस्तान में ठनी

Spread the love

पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा पर पाकिस्तान की सेना और तालिबानी लड़ाकों के बीच तनाव बढ़ने के संकेत हैं। इसकी शुरुआत पिछले महीने हुई। 22 दिसंबर को अफगान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि तालिबान सुरक्षा बलों ने अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत से लगी सीमा पर पाकिस्तानी सेना को ‘गैर-कानूनी’ घेरा खड़ा करने से रोक दिया है। उसके बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो सर्कुलेट हुआ, जिसमें दिखाया गया कि तालिबान सैनिकों ने घेरेबंदी की सामग्रियों को जब्त कर लिया है। तालिबानी लड़ाके पाकिस्तानी सैनिकों को चेतावनी देते भी देखे गए कि भविष्य में घेराबंदी करने की कोशिश न करें।एक समाचार एजेंसी से बातचीत में तालिबान के दो अधिकारियों ने बताया कि सीमा पर तालिबान और पाकिस्तानी सेना का आमना-सामना हुआ, जिसके बाद से वहां तनाव है। इस घटना के बाद कुमर प्रांत से लगी सीमा पर पाकिस्तानी की तरफ से मोर्टार दागे जाने की खबर भी आ चुकी है। विश्लेषकों ने इसे रहस्यमय बताया है कि ये घटनाएं इस्लामाबाद में अफगानिस्तान के मसले पर इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक के तुरंत बाद हुईं।कुछ खबरों में बताया गया है कि ओआईसी की बैठक को पाकिस्तानी कूटनीति की बड़ी कामयाबी के रूप में देखा गया। जबकि उससे तालिबान को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने की तालिबान की उम्मीद इस बैठक से पूरी नहीं हुई। उससे तालिबान नाराज हुआ है।पाकिस्तानी विश्लेषकों का कहना है कि ओआईसी की बैठक में आए तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुट्टाकी को बैठक के दौरान पिछली कतार में बैठाया गया था। इससे तालिबान को यह महसूस हुआ कि ओआईसी की बैठक का इस्तेमाल पाकिस्तान अपनी इमेज बनाने के लिए कर रहा है।पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच 2,611 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसे डूरंड लाइन कहा जाता है। लेकिन वेबसाइट एशिया टाइम्स पर छपे एक विश्लेषण में ध्यान दिलाया गया है कि तालिबान ने इस सीमा को कभी मान्यता नहीं दी। उस लाइन पर घेराबंदी करने को लेकर उसे हमेशा एतराज रहा है। जबकि पाकिस्तान ने बीते चार साल के दौरान भारी खर्च से वहां घेराबंदी के प्रोजेक्ट को आगे बढाया है। बताया जाता है कि इस परियोजना पर पाकिस्तान के 60 करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं। तालिबान की राय है कि घेरा लगा कर पाकिस्तान ने इस सीमा को पक्का करने की कोशिश की है। जबकि वह इसे वैध सीमा नहीं मानता।बताया जाता है कि पिछले अगस्त में तब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया, तब उसे पाकिस्तान से ऊंची उम्मीदें थीं। लेकिन उसकी आशाएं पूरी नहीं हुईं। उसे सबसे बड़ी नाराजगी इस बात से है कि पाकिस्तान ने अभी तक तालिबान शासन को अफगानिस्तान की सरकार के रूप मे मान्यता नहीं दी है। अफगान अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए भी वह कोई मदद नहीं पहुंचा सका है।तालिबान को रूस और चीन ने कई प्रकार की मदद दी है। लेकिन उन्होंने भी उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी है। पाकिस्तान की इन मामलों में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखी है। इससे तालिबान अब खफा है और सीधे पाकिस्तान को चुनौती देने के मूड में दिख रहा है।(साभार:अमर उजाला)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *