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केवट भाई सरीखे लोग झोपड़ी बनाकर रहने को विवश

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पारी शैबालिनी

चित्तरंजन: इनसे मिलिये ये हैं केवट भाई। मेरे दिल के काफी करीब रहते हैं। चिरेका प्रशासन के डब्ल्यू डी यानि की वाटर एंड ड्रेनेज विभाग से सेवा निवृत्त रेलकर्मी हैं। वर्तमान में ये अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ एरिया -5 के 35 नम्बर रास्ता में 6/1ए के बगल में कच्चे मकान में अभी भी रहते हैं। कच्चा मकान यानि की प्रशासनिक शब्दों में कहा जाए तो रेल की जमीन पर अवैध मकान का निर्माण कर रह रहे हैं। इनसे यह पूछे जाने पर कि आजकल ऐसे अवैध निर्माण पर चिरेका प्रशासन बुलडोजर चलवाने में अपनी मानवता को ताक पर रखकर लगातार मानवीयता को लहूलुहान कर रही है ऐसे में आपको डर नहीं लगता? केवट भाई अपने चिरपरिचित अंदाज में कहते हैं,उपर वाले की मर्जी।मजे की बात तो ये है कि केवट भाई के तीनों पुत्र सॉप्टवेयर इंजीनियर हैं जबकि एकमात्र बेटी कला संकाय से पीजी करने के बाद कॉमर्स सलेकर सीए के सेकेंड ईयर की छात्रा है। मगर, शायद इसे ही दुर्भाग्य कहते हैं कि आज की तारीख में केवट भाई की सभी संतान बेरोजगारी से जूझ रहे हैं।पत्रकार सुरक्षा संघ के बंगाल प्रदेश प्रभारी प्रह्लाद प्रसाद उर्फ़ पारो शैवलिनी ने इस बात पर घोर आश्चर्य व्यक्त किया है कि इतना पढलिख कर भी बेरोजगारी से जूझना,ऐसा इसी देश में संभव हो सकता है । दूसरा यह भी आश्चर्य का विषय है कि चिरेका महाप्रबंधकों में एक भगवान (दास) थे जो खुश होकर किसी हैमियोपैथ डॉक्टर को रेल कवाटर दान कर दिया जबकि केवट भाई सरीखे लोग झोपड़ी बनाकर रहने को विवश है।

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